शहीद-ए-आज़म सरदार भगतसिंह से भरी अदालत में जब यह पूछा गया कि क्रांति से उन लोगों का क्या मतलब है? तब इस प्रश्न के उत्तर में भगत सिंह ने बताया था कि “क्रांति के लिए ख़ूनी लड़ाइयां अनिवार्य नहीं है और न ही उसमें व्यक्तिगत प्रतिहिंसा के लिए कोई स्थान है. क्रान्ति बम और पिस्तौल का संप्रदाय नहीं है. क्रांति से हमारा अभिप्राय है अन्याय पर आधारित मौजूदा समाज-व्यवस्था में आमूल परिवर्तन”
भगत सिंह ने जिस भारत का सपना देखा था भगत सिंह जिस मानवता के प्रबल पक्षधर थे...भगत सिंह ने जिस साम्राज्यवादी व्यवस्था की खिलाफत की थी....भगत सिंह ने जिस इन्कलाब का नारा बुलंद किया था....’रणभेरी’ भगत सिंह के सपनों के भारत निर्माण, भगत सिंह के अधूरे अरमानों और क्रांतिकारी विचारों की झंडाबरदार बनने को आतुर है....
हम अघोषित आपातकाल के दौर में जी रहे हैं। इस दौर में अभिव्यक्ति की आ़जादी पर सरकार का खौफनाक पहरा है। आ़जादी की इबारत लिखने में अहम् भूमिका निभाने वाले चौथे स्तम्भ के क्रांतिकारी कलम भी अब बेड़ियों में कैद होती जा रही हैं। पत्रकारिता को आज भी मिशन समझकर वास्तविक राजधर्म का पालन करने वाले पत्रकार देश भर में सरकारों के ईशारे पर ही मौत के घाट उतारें जा रहे हैं।
हम अतीत के रक्तरंजित पन्नों को पलटकर देखेंगे तो इतिहास के पन्नें यह बयां करते हैं कि जंग-ए-आजादी की शमशीर को धार देने का काम कलमकारों ने ही किया था। जब इस मुल्क की आ़जादी की खातिर हर जाति और मजहब के नौजवान अपनी आवाज बुलंद करने में कभी पीछे नहीं हटें थें तो उनकी सोच, उनके विचारों और देश हित में बढ़ने वाले उनके हर एक क्रांतिकारी कदम का साथ किसी ने सबसे पहले दिया तो वह उस दौर की पत्रकारिता थी, वह उस दौर के निडर, निर्भिक व ईमानदार पत्रकार थें जिन्होने वास्तव में मिशन के रूप में पत्रकारिता धर्म का निर्वहन करके समाज को दिशा देने का काम किया और साबित किया कि पत्रकारिता ही समाज का चौथा स्तम्भ है जो देश की दशा व दिशा बदलने का सामर्थ्य रखती है।
परंतु आज परिस्थितियां विपरीत होती जा रही हैं मिशन के रूप में शुरू होने वाली पत्रकारिता बदलते दौर के साथ मिशन से कमीशन बनी और अब कमीशन से प्रोफेशन बनकर रह गयी है। यह बाजारवाद का असर ही है की अब खबरें विज्ञापन या फिर चाटुकारिता के आधार पर बनाई जाती है। ऐसी खबरें न तो आम जनता के बदतर हालात को दिखाती है,नही राजनीति के स्याह चेहरे को उजागर करती है और न ही ब्यूरोक्रेट बाबूओं के समाज द्वारा अघोषित लूट के सम्राज्य को बेनकाब करता है।
इन सबसे इतर यदि कोई खोजी पत्रकार आज के परिवेश में खोजी पत्रकारिता के बल पर शासन और सरकार को उसके राज धर्म का बोध करा रहा है, लोकतंत्र की दुहाई दे रहा है, तो उसके इस सत्कर्म को हिमाकत मानी जाती है। आश्चर्य तो तब होता है कि ऐसे पत्रकारों का निडरता के साथ समर्थन करने के बजाय पत्रकारों की ही जमात इनके खिलाफ और दोषियों के साथ खड़ी हो जाती है।
वाराणसी से प्रकाशित होने वाला एक सांध्यकालीन अखबार ''गूंज उठी रणभेरी'' आज ब्रिटिश हुक्मरानों के दौर के ‘रणभेरी' की याद दिला रहा है। नि:संदेह आज पत्रकारिता का स्याह चेहरा अत्यंत ही भयावह होता जा रहा है....क्योंकि आज पत्रकारों की जमात मौन है। मुल्क की अवाम मौन है। सरकार के चाटुकार मौन है। ईमानदारी के झण्डाबरदार मौन हैं। जिले का प्रशासन मौन है। नेताओ का भाषण मौन है। बुद्धजीवियों का प्रकाशन मौन है। क्रांति की मशालें मौन है। इंसानियत के पैरोकार मौन हैं। हर एक मुखर कलम मौन है। इस जिंदा शहर बनारस में हर तरफ छायी विरानगी नही इस बात का एहसास कराती है कि इस अघोषित आपातकाल और तानाशाही सरकार की पूरी व्यवस्था ही मौन है।
बहरहाल! रणभेरी मीडिया वेंचर प्रा.लि. रणभेरी के प्रकाशन के माध्यम से समाज के अतीत,वर्तमान और भविष्य के साथ-साथ आम आदमी की ज़िंदगी के रोजमर्रा से सारोकार रखने वाले विभिन्न मसलों पर आवाम की आवाज़ बुलंद करना चाहती है, अपनी ईमानदार कलम की बदौलत रणभेरी समाज में अमन और अहिंसा के लिबास में लिपटा इंकलाबी विचारों का एक ज़बरदस्त तूफ़ान खड़ा करना चाहती हैं।
हमारी यह कोशिश होगी कि रणभेरी के जरिये प्रकाशित व प्रसारित किसी भी ख़बर या विचार से किसी ख़ास जाति, मजहब, क्षेत्र, व्यक्तित्व या राजनीतिक दल का न ही दिल दू:खे और ना ही देश के मान और सम्मान के महल के महाराव और गुम्बद में कोई दरार पड़े...!
आज मुठ्ठीभर कॉरपोरेट घरानों की रखैल बन चुकी मीडिया हाऊस के लिए हम यही कहना चाहेंगे.....
''भले ही तेरे रगो का खून ठण्डा हो, मगर हमारी कलम का तो स्याही भी खौलता है''
“इंक़लाब जिंदाबाद-साम्राज्यवाद मुर्दाबाद”
अजीत सिंह
(डायरेक्टर)
रणभेरी मीडिया वेंचर प्रा.लि.
शुमैला आफरीन
(डायरेक्टर)
रणभेरी मीडिया वेंचर प्रा.लि.
श्रेष्ठा सिंह
(सम्पादक)
गूँज उठी रणभेरी
प्रवीण कुमार यादव
(मुद्रक/प्रकाशक)
गूँज उठी रणभेरी